गुप्तार घाट |
सरयू का जल
संध्या बेला में
छवि
वैदेही की
ले आता है ।
साक्षी हैं
इस घाट के
किनारे पड़ी मिट्टी का
एक-एक कण ,
छोटी-छोटी
बुर्जियों के
इक-इक कंगूरे--
कि खोए रहते हैं
पहरों-पहर
याद में
प्रभु
वैदेही के ।
हर दिन
प्रातःकाल का सूरज
प्रणाम करता है
जगजननी को
और
विदा लेता हुआ
साक्ष्य लिए जाता है
शोक में डूबे
प्रभु के
दर्शन के ।
यहाँ से
गुजरने वाली हवा भी
उदास
निःशब्द बहती है
परन्तु बेबसी अपनी
प्रकट नहीं करती है ।
साक्षी है
धरा
और अम्बर भी
प्रभु की
पीड़ा के ...
दुःख के ...
गवाह है
तारा-मण्डल भी
कि विकल हो
पीड़ा से
विछोह की
प्रभु
तज राजपाट
वैभव इह लोक के
बढ़े चले गए
गहरे जल में
मिलने अपनी
प्रिया से ।
न पीछे किसी का मोह था
न रूदन ही था सुनाई दिया
सारे जग का ,
बढ़े गए ...
चलते गए ...
विलीन हुए
इसी सरयू के
अथाह
गहरे
जल में ।
साक्षी थी धरा ,
साक्षी था अम्बर ...
जो आज भी
उदास
मौन
निःशब्द
प्रतिदिन
सरयू के जल में
वैदेही
और
प्रभु की
युगल-छवि देखते हैं ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति… दिल को छू लेने वाली कविता ...इस पक्ष पर शायद ही किसी ने सोचा हो बधाई .लिखती रहिये...
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया .
ReplyDeleteblog ki duniya me swagat hai aapka :)
ReplyDeleteabhivyakti ka kya kahun.. aap behtareen ho:)
बहुत बहुत शुक्रिया .
DeleteNeeta ji - ek adbhut kavita , Badhai ho
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteसदेही से विदेही बनने की वेदना की साक्षी है सरयू ...एक नदी में कई सदी का प्रवाहमयी सच समाया है ...राज्य और राजा के अहंकार को आकार देती वह देह थी दो देशों के बीच युद्ध जीतने के अहंकार की चल वैजन्ती सी ...पर अहंकारों के प्रकारों से दूर उसकी आत्मा विदेही थी ...उसकी वेदना आज भी सरयू में बहती है .-----श्रेष्ठ रचना है आपकी !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteneetaa jee
ReplyDeletenamaskaar !
behad sunder abhivyakti badhai ,sadhuwad
bahut achcha likha hai :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता,,,मन रम जाता है इन शब्दों में
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त...सार्थक....सुन्दर अभिव्यक्ति नीता.....पहली बार जाना यह सच ...!
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