वह लड़की
आज भी अकेले बैठी
सोचती रहती है
बीते हुए अनेक पलों को ,
पंख लग जाते हैं
उसकी सोच को ।
देखती है ख़्वाब में
जागते हुए
अपना नन्हा -
सुन्दर बस्ता
गुलाबी रंग का
जिस पर बनी थीं
उड़ती हुई
रंग-बिरंगी तितलियाँ ।
वो प्यारा-सा बस्ता
एकान्त में
किताबों से
बातें किया करता ,
उसे भी भाता था
सफ़र
घर से स्कूल का ।
संगी-साथी
दोस्त भी
उसके खूब थे ,
जिनके साथ
उसने ख़ोजे
नए रास्ते
अनेक थे ।
छोटा था
वो पहला सफ़र
पर था बहुत ही
अच्छा ।
आगे सफ़र
मुश्किल हुए ,
दोस्त भी
अब बदल गए ,
बस्ते का भी रंग
अब
गुलाबी न रहा ,
तितलियाँ भी
कहीं उड़ गईं .....
सोचती रहती है लड़की ,
सोचती ही रहती है ...........
नेपथ्य को निहारती सुन्दर कविता .
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Delete..बचपन की यादें ताजा करती सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
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