Saturday 18 May 2013

लड़की

वह लड़की
आज भी अकेले बैठी
सोचती रहती है
बीते हुए अनेक पलों को ,
पंख लग जाते हैं
उसकी सोच को ।

देखती है ख़्वाब में
जागते हुए
अपना नन्हा -
सुन्दर बस्ता
गुलाबी रंग का
जिस पर बनी थीं
उड़ती हुई
रंग-बिरंगी तितलियाँ ।

वो प्यारा-सा बस्ता
एकान्त में
किताबों से
बातें किया करता ,
उसे भी भाता था 
सफ़र
घर से स्कूल का ।

संगी-साथी 
दोस्त भी
उसके खूब थे ,
जिनके साथ
उसने ख़ोजे
नए रास्ते 
अनेक थे ।

छोटा था
वो पहला सफ़र
पर था बहुत ही 
अच्छा ।

आगे सफ़र
मुश्किल हुए ,
दोस्त भी
अब बदल गए ,
बस्ते का भी रंग
अब 
गुलाबी न रहा ,
तितलियाँ भी
कहीं उड़ गईं .....

सोचती रहती है लड़की ,
सोचती ही रहती है ...........


4 comments:

  1. नेपथ्य को निहारती सुन्दर कविता .

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया

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  2. ..बचपन की यादें ताजा करती सुन्दर रचना!

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया

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