Monday 22 July 2013

सावन

कनक भवन ... झूलनोत्सव .... अयोध्या 
हरियाली का , उमंग का , झूले का , चूड़ियों का , मेहन्दी का और कजरी का महीना है सावन । "सावन " शब्द में ही आकर्षण है ।

      सखि देखो सावन आयो
      भिजोयो मोरी सारी , रे हारी ...
      सखि सब मिल मंगल गाओ
      हाथन मां मेहन्दी रचाओ
      अरे रामा , बूंदन पड़त फुहार
      भिजोयो मोरी सारी रे हारी ...

जिधर नज़र डालो धरती हरी-भरी नज़र आती है सावन में । गाँव में तो आज भी आम और कदम्ब के पेड़ पर झूले डाल दिए जाते हैं ।

       अरे रामा सावन मास सुहावन
       सब सखि गावैं काजरी ...
       झूला पड़ा कदम्ब की डारी
       झूलैं सब ब्रज के नर नारी
       अरे रामा गावैं राग मल्हार
       सु दै दै तारी रे हारी ....

मन्दिरों में झूलनोत्सव की महिमा का वर्णन ही असम्भव है । बेले की कलियों और जूही के पुष्पों के अनुपम श्रृंगार से युक्त प्रभु और जानकी जी की छवि देखते ही बनती है ।

        झूला धीरे से झुलाओ सुकुमारी सिया हैं...
        झूला कंचन संजोय , लागी रेशम की डोर
        झोंका धीरे से लगाओ , सुकुमारी सिया हैं ...
        छाई घटा घनघोर , बोले पपीहा मोर
        झूले अवध किशोर , सुकुमारी सिया हैं ...
        झूले सरयू के तीर, पहने रेशम के चीर
        छवि हियरे बसाओ , सुकुमारी सिया हैं ...

खेतों में हरे-हरे धान के बिरवों की सुगन्ध फैली होती है । किसान की खुशी देखते ही बनती है ।

         धान की बगिया महक उठी है
         हरी-हरी लहराए
         दे संदेसवा मीठे-मीठे
         मनवा भर-भर आए ....

ऐसे में काले-काले बादलों से भरा आकाश , गरजते बादल , बरसता सावन और ठन्डी हवा न जाने कितने सपने ले आते हैं ।

           घनन-घनन घन बादर गरजै
           टकरायें घनघोर
           ठन्डी-ठन्डी पवन झकोरे
           नाचन लागे मोर ...
           बरखा आई , बरखा आई
           ऋतु सुहानी आई
           झूल रही है सांवर गोरी
           प्यार के सपने लाई ...

सावन में बेटियों को मायके बुलाने की परम्परा रही है । बेटियाँ मन ही मन दोहराने लगती हैं ...

           बाबा ! मोरे भईया को भेजो रे
           के सावन आया ...

रंग-बिरंगे झूले पेड़ों पर डाले जाते हैं । रस्सी कूदने के लिए गोटा बिनी रस्सी मंगाई जाती है । सतरंगे गिट्टे बांस की रंगीन डलिया में रखे जाते हैं ।

अनरसे , सूतफेनी , सैंधा , फुलौरी की महक से रसोई गमकने लगती है । तरह-तरह के पकवान बनते हैं । पूरा उत्सव का वातावरण छा जाता है ।

आजकल शहरों में तो दिखाई नहीं देता परन्तु गाँवों में आज भी इसका कुछ महत्व शेष है ।

आप सभी को सावन की हरी-भरी शुभकामनाएँ ।

Saturday 6 July 2013

रिश्ते

कुछ नाम होते हैं रिश्तों के ,
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं ....
एक गहरे जा
मन के किसी कोने में
मुस्कुराता है,
दूजा बनके दर्द
असहनीय पीड़ा दे जाता है ।

भीगती हूँ उस
अनकहे दर्द की
बेनाम पीड़ा से ...
सिमटी-सिमटी
उसे जानने की 
कोशिश करती हूँ ।

मौन उसका
मुझे
और भी रूलाता है,
सहमी हुई मैं
उसकी हर आहट पर
अपने खोल में 
जा छुपती हूँ ।

सोचा करती हूँ कि ...
नाम से बेनाम रिश्ता
शायद दर्द ना देता...
पर दर्द तो दर्द ही है
जानते हुए भी
न जाने क्यों
अनजान बन जाती हूँ ।

जो है , वो नहीं है
जो नहीं है , वह है ...
इसे स्वीकार करने की
उधेड़-बुन में
दिन-रात 
एक करती हूँ , और
पीड़ा से
हार जाती हूँ ।

होना
न होना
इन रिश्तों का
क्यों भुलावे में डालता है,
हर पल
यही सोचा करती हूँ ।