अम्बर से पाताल तक
पग-पग पर जहाँ
तिलिस्म हो ,
गहन कोहरा छाया हो
जहाँ रिश्तों में जमी
बर्फ़ का ...
सुनो जरा , अपना ठौर बना लूँ
मैं ।
अनंत के विस्तार में जहाँ
खो गए हों शब्द
अपने ही विन्यास में
और जा मिलें
नि:शब्द से ...
ठहरो जरा , अपना पैर जमा लूँ
मैं ।
रेखाओं से रेखायें कटती हों
जहाँ रीतापन ही भरता हो
और दर्पण झूठा लगता हो
जहाँ जिस्म ही जिस्म कटते हों ...
आओ जरा , अपना दामन भर लूँ
मैं ।
जहाँ सायों का लगता मेला हो
यादों का लगता डेरा हो
जहाँ पसरा घोर अँधेरा हो
हर चेतन डूबे जहाँ
अवचेतन में ...
चलो जरा , अपना घर बना लूँ
मैं ।
पग-पग पर जहाँ
तिलिस्म हो ,
गहन कोहरा छाया हो
जहाँ रिश्तों में जमी
बर्फ़ का ...
सुनो जरा , अपना ठौर बना लूँ
मैं ।
अनंत के विस्तार में जहाँ
खो गए हों शब्द
अपने ही विन्यास में
और जा मिलें
नि:शब्द से ...
ठहरो जरा , अपना पैर जमा लूँ
मैं ।
रेखाओं से रेखायें कटती हों
जहाँ रीतापन ही भरता हो
और दर्पण झूठा लगता हो
जहाँ जिस्म ही जिस्म कटते हों ...
आओ जरा , अपना दामन भर लूँ
मैं ।
जहाँ सायों का लगता मेला हो
यादों का लगता डेरा हो
जहाँ पसरा घोर अँधेरा हो
हर चेतन डूबे जहाँ
अवचेतन में ...
चलो जरा , अपना घर बना लूँ
मैं ।
बहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteतीज और ईद मुबारक हो!
सादर
आभार आपका ।
Deleteईद आपको भी मुबारक ।
तीज में माता रानी आपको आशीर्वाद दें यही कामना है ।
bahut badhiya badhaai aapko :)
ReplyDeleteआभार आपका ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकल 11/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
आभार , यशवंत जी
Deleteशून्य से विस्तार की ओर ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteवाह...
ReplyDeleteअनंत के विस्तार में जहाँ
खो गए हों शब्द
अपने ही विन्यास में
और जा मिलें
नि:शब्द से ...
ठहरो जरा , अपना पैर जमा लूँ
मैं ।
बहुत बहुत सुन्दर!!!!
अनु
हार्दिक आभार
Deleteजहाँ रिश्तों में जमी
ReplyDeleteबर्फ़ का ...
सुनो जरा , अपना ठौर बना लूँ
मैं ।.... वाह नीता जी , सुन्दर अभिव्यक्ति !
हार्दिक आभार
Deleteवाह नीता पहली बार तुम्हारे ब्लॉग पर आना हुआ ....मज़ा आ गया ...बहुत सुन्दर लिखती हो...
ReplyDeleteहार्दिक स्वागत आपका , सरस जी
Deleteआपके प्रोत्साहन की ह्रदय से आभारी हूँ
जीवन और प्रेम की गहराईयों में समाई हुई कविता .. दिल को छु गयी जी ..
ReplyDeleteदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
अनंत के विस्तार में जहाँ
ReplyDeleteखो गए हों शब्द
अपने ही विन्यास में
और जा मिलें
नि:शब्द से ...
ठहरो जरा , अपना पैर जमा लूँ
मैं ।
बहुत सुन्दर