कुछ नाम होते हैं रिश्तों के ,
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं ....
एक गहरे जा
मन के किसी कोने में
मुस्कुराता है,
दूजा बनके दर्द
असहनीय पीड़ा दे जाता है ।
भीगती हूँ उस
अनकहे दर्द की
बेनाम पीड़ा से ...
सिमटी-सिमटी
उसे जानने की
कोशिश करती हूँ ।
मौन उसका
मुझे
और भी रूलाता है,
सहमी हुई मैं
उसकी हर आहट पर
अपने खोल में
जा छुपती हूँ ।
सोचा करती हूँ कि ...
नाम से बेनाम रिश्ता
शायद दर्द ना देता...
पर दर्द तो दर्द ही है
जानते हुए भी
न जाने क्यों
अनजान बन जाती हूँ ।
जो है , वो नहीं है
जो नहीं है , वह है ...
इसे स्वीकार करने की
उधेड़-बुन में
दिन-रात
एक करती हूँ , और
पीड़ा से
हार जाती हूँ ।
होना
न होना
इन रिश्तों का
क्यों भुलावे में डालता है,
हर पल
यही सोचा करती हूँ ।
रिश्तीं के दर्द को बखूबी से शब्द दिए आपने , बहुत सुंदर.
ReplyDeleterishton ke dard ko bahut alag andaaz me vyakt kiya hai ... sundar bhaavabhivyakti ..Neeta ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। जो रिश्तों के मायने समझें, उनका सम्मान करें, उनसे रिश्ता ताउम्र जुदा होता है-भले ही बेनाम हो ... और जहां कोई मायना ही नहीं- वहाँ रिश्ता तो है मगर सिर्फ नाम भर का।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
कल 18/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
कुछ नाम होते हैं रिश्तों के ,
ReplyDeleteकुछ रिश्ते नाम के होते हैं ....
रिश्ते कैसे भी हों बनना बिगड़ना उनकी अपनी नियति होती हैं.शायर ने कहा है -
कैसे निबाहू तेरे रिश्ते को मै ए साकिब ,
तेरे दर्द ने मुझे घायल कर दिया है.
निसंदेह साधुवाद योग्य रचना....
ReplyDeleteसोचा करती हूँ कि ...
ReplyDeleteनाम से बेनाम रिश्ता
शायद दर्द ना देता...
पर दर्द तो दर्द ही है
जानते हुए भी
न जाने क्यों
अनजान बन जाती हूँ ।
बहुत सुन्दर