Saturday 6 July 2013

रिश्ते

कुछ नाम होते हैं रिश्तों के ,
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं ....
एक गहरे जा
मन के किसी कोने में
मुस्कुराता है,
दूजा बनके दर्द
असहनीय पीड़ा दे जाता है ।

भीगती हूँ उस
अनकहे दर्द की
बेनाम पीड़ा से ...
सिमटी-सिमटी
उसे जानने की 
कोशिश करती हूँ ।

मौन उसका
मुझे
और भी रूलाता है,
सहमी हुई मैं
उसकी हर आहट पर
अपने खोल में 
जा छुपती हूँ ।

सोचा करती हूँ कि ...
नाम से बेनाम रिश्ता
शायद दर्द ना देता...
पर दर्द तो दर्द ही है
जानते हुए भी
न जाने क्यों
अनजान बन जाती हूँ ।

जो है , वो नहीं है
जो नहीं है , वह है ...
इसे स्वीकार करने की
उधेड़-बुन में
दिन-रात 
एक करती हूँ , और
पीड़ा से
हार जाती हूँ ।

होना
न होना
इन रिश्तों का
क्यों भुलावे में डालता है,
हर पल
यही सोचा करती हूँ ।

7 comments:

  1. रिश्तीं के दर्द को बखूबी से शब्द दिए आपने , बहुत सुंदर.

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  2. rishton ke dard ko bahut alag andaaz me vyakt kiya hai ... sundar bhaavabhivyakti ..Neeta ji

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। जो रिश्तों के मायने समझें, उनका सम्मान करें, उनसे रिश्ता ताउम्र जुदा होता है-भले ही बेनाम हो ... और जहां कोई मायना ही नहीं- वहाँ रिश्ता तो है मगर सिर्फ नाम भर का।
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

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  4. कल 18/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  5. कुछ नाम होते हैं रिश्तों के ,
    कुछ रिश्ते नाम के होते हैं ....
    रिश्ते कैसे भी हों बनना बिगड़ना उनकी अपनी नियति होती हैं.शायर ने कहा है -
    कैसे निबाहू तेरे रिश्ते को मै ए साकिब ,
    तेरे दर्द ने मुझे घायल कर दिया है.

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  6. निसंदेह साधुवाद योग्य रचना....

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  7. सोचा करती हूँ कि ...
    नाम से बेनाम रिश्ता
    शायद दर्द ना देता...
    पर दर्द तो दर्द ही है
    जानते हुए भी
    न जाने क्यों
    अनजान बन जाती हूँ ।
    बहुत सुन्दर

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