कनक भवन ... झूलनोत्सव .... अयोध्या |
सखि देखो सावन आयो
भिजोयो मोरी सारी , रे हारी ...
सखि सब मिल मंगल गाओ
हाथन मां मेहन्दी रचाओ
अरे रामा , बूंदन पड़त फुहार
भिजोयो मोरी सारी रे हारी ...
जिधर नज़र डालो धरती हरी-भरी नज़र आती है सावन में । गाँव में तो आज भी आम और कदम्ब के पेड़ पर झूले डाल दिए जाते हैं ।
अरे रामा सावन मास सुहावन
सब सखि गावैं काजरी ...
झूला पड़ा कदम्ब की डारी
झूलैं सब ब्रज के नर नारी
अरे रामा गावैं राग मल्हार
सु दै दै तारी रे हारी ....
मन्दिरों में झूलनोत्सव की महिमा का वर्णन ही असम्भव है । बेले की कलियों और जूही के पुष्पों के अनुपम श्रृंगार से युक्त प्रभु और जानकी जी की छवि देखते ही बनती है ।
झूला धीरे से झुलाओ सुकुमारी सिया हैं...
झूला कंचन संजोय , लागी रेशम की डोर
झोंका धीरे से लगाओ , सुकुमारी सिया हैं ...
छाई घटा घनघोर , बोले पपीहा मोर
झूले अवध किशोर , सुकुमारी सिया हैं ...
झूले सरयू के तीर, पहने रेशम के चीर
छवि हियरे बसाओ , सुकुमारी सिया हैं ...
खेतों में हरे-हरे धान के बिरवों की सुगन्ध फैली होती है । किसान की खुशी देखते ही बनती है ।
धान की बगिया महक उठी है
हरी-हरी लहराए
दे संदेसवा मीठे-मीठे
मनवा भर-भर आए ....
ऐसे में काले-काले बादलों से भरा आकाश , गरजते बादल , बरसता सावन और ठन्डी हवा न जाने कितने सपने ले आते हैं ।
घनन-घनन घन बादर गरजै
टकरायें घनघोर
ठन्डी-ठन्डी पवन झकोरे
नाचन लागे मोर ...
बरखा आई , बरखा आई
ऋतु सुहानी आई
झूल रही है सांवर गोरी
प्यार के सपने लाई ...
सावन में बेटियों को मायके बुलाने की परम्परा रही है । बेटियाँ मन ही मन दोहराने लगती हैं ...
बाबा ! मोरे भईया को भेजो रे
के सावन आया ...
रंग-बिरंगे झूले पेड़ों पर डाले जाते हैं । रस्सी कूदने के लिए गोटा बिनी रस्सी मंगाई जाती है । सतरंगे गिट्टे बांस की रंगीन डलिया में रखे जाते हैं ।
अनरसे , सूतफेनी , सैंधा , फुलौरी की महक से रसोई गमकने लगती है । तरह-तरह के पकवान बनते हैं । पूरा उत्सव का वातावरण छा जाता है ।
आजकल शहरों में तो दिखाई नहीं देता परन्तु गाँवों में आज भी इसका कुछ महत्व शेष है ।
आप सभी को सावन की हरी-भरी शुभकामनाएँ ।
khubsurat saawan ka pyara sa varnan:)
ReplyDeletepyara sa shabd srijan !!
आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति........
ReplyDeleteखूबसूरत ...
ReplyDeleteआभार
Deleteआहा . आनंद आ गया , हम तो बनारसी ठहरे कजरी बहुत भावे है हमका.
ReplyDeleteआभार
Deleteगीतों भरा सावन का सुन्दर चित्रण सखी ...अनरसे , सूतफेनी , सैंधा , फुलौरी जैसे मुह में घुल गयी हो !!! कल से सावन की दस्तक है ..शुभकामनायें !
ReplyDeleteआभार
Deleteआपको सावन की अनंत शुभकामनायें
khubsurat
ReplyDeleteआभार
Deleteकल 25/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
आभार
Deleteबहुत सुन्दर सुमधुर सावनी फुहार ..
ReplyDeleteआभार
Deleteवाह नीता शहर में बैठे बैठे ...देहातों के सावन में मन भिगो आयी....अचानक सावन से प्यार हो गया
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद , सरस जी
Deleteझूला धीरे से झुलाओ सुकुमारी सिया हैं...
ReplyDeleteझूला कंचन संजोय , लागी रेशम की डोर
झोंका धीरे से लगाओ , सुकुमारी सिया हैं ...
छाई घटा घनघोर , बोले पपीहा मोर
झूले अवध किशोर , सुकुमारी सिया हैं ...
झूले सरयू के तीर, पहने रेशम के चीर
छवि हियरे बसाओ , सुकुमारी सिया हैं ...
सावन का स्वागत करती सुन्दर रचना