Tuesday 4 June 2013

गर्म लू के थपेड़े
ख़िड़की के बाहर भी , और
मन के अन्दर भी
तूफ़ान मचा देते हैं ।

पहरों बहते हैं
सूरज के उगने के साथ
और
चाँद के आने से पहले ।

उनका तो कोई
रूख नहीं होता
दिशा भी नहीं होती ...

मन भी बह जाता है
उन सब गर्म थपेड़ों के साथ 
जो मिले हैं जमाने से
इक उम्र के साथ ।

उनकी भी तो कोई
दिशा नहीं होती
न होता है
किसी रूख का पता ...

साल-दर-साल
पल-पल
हर क्षण 
मौसम के बदलते ही
आ मिलते हैं 
किसी ख़ास दोस्त की तरह ।

बाहर भी
भीतर भी
तपन झेलनी होती है
जिन्दा भी 
रहना ही होता है
हर इक 
ऋतु के साथ ...

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