दरख्त है इक
जो सदियों से
दोस्त था मेरा ।
हर इक आहट
मेरी
पहचानता था ।
बिन कहे
शब्द मेरे
पहुँचते थे
उस तक ।
हवा का
रूख
बदल गया ,
वो
जाने कहाँ
गुम गया .....
ढूंढती हूँ
भटकती हूँ ,
ख़ोजती हूँ
उसे ।
हर इक
दर-ओ-दीवार
झांकती हूँ ।
हर इक
चेहरा
अजनबी है ,
बेगाना है ।
वो जो
इक अपना है
गुम गया .....
क्या
तुमने
उसे
देखा है .....
क्या तुमने उसे देखा है ???
जो सदियों से
दोस्त था मेरा ।
हर इक आहट
मेरी
पहचानता था ।
बिन कहे
शब्द मेरे
पहुँचते थे
उस तक ।
हवा का
रूख
बदल गया ,
वो
जाने कहाँ
गुम गया .....
ढूंढती हूँ
भटकती हूँ ,
ख़ोजती हूँ
उसे ।
हर इक
दर-ओ-दीवार
झांकती हूँ ।
हर इक
चेहरा
अजनबी है ,
बेगाना है ।
वो जो
इक अपना है
गुम गया .....
क्या
तुमने
उसे
देखा है .....
क्या तुमने उसे देखा है ???
आभार
ReplyDeleteखूबसूरत भीनी अभिव्यक्ति .. पता है कि वो ही है ... जो सुनता है अपनी, मगर आँखों से ओझल ... और अब नयन परेशां ..
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